दीपावली: दीपों का उत्सव-निबंध, भाषण, संदेश

‘दीपावली’ भारतीय संस्कृति के पवित्र त्योहारों में से एक है। इसे दीपों का उत्सव भी कहा जाता है, अर्थात दीपोत्सव।यह उत्सव है-अंधकार पर प्रकाश के विजय का, असत्य पर सत्य के जीत का,नश्वरता पर अमरत्व के जय का, गन्दगी पर स्वच्छता के महत्व का। पाँच दिनों तक चलने वाला दीपावली का यह त्योहार सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

दीपावली

दीपावली कब मनाया जाता है?

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दीपावली का त्योहार प्रतिवर्ष कार्तिक मास के अमावस्या की रात को मनाया जाता है। अंग्रेजी महीने के अनुसार यह अक्टूबर या नवम्बर महीने में पड़ता है। दीपावली की शाम को शुभ मुहूर्त में धन की देवी माँ लक्ष्मी और गणपति देवा की पूजा अर्चना की जाती है। इस त्योहार में साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है।

दीपावली क्यों मनाया जाता है?

दीपावली भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। जिसप्रकार प्रत्येक पर्व-त्योहार मनाने के पीछे कोई-न-कोई कहानी होती है, वैसे ही दीपावली मनाने के पीछे भी कई किवदंतियाँ प्रचलित हैं। अलग-अलग धर्मों वाले लोग इसे अलग -अलग कारणों से मनाते हैं।

हिन्दू-धर्म में दीपावली की पौराणिक मान्यताएं:

दीपावली मनाने के कई पौराणिक मान्यताएं हिन्दू और हैं धर्म में है। हिन्दू धर्म में भगवान राम और कृष्ण तथा पांडवो से संबंधित हैं।

दीपावली और भगवान राम से जुड़ी पौराणिक मान्यता:

हिन्दू धर्म में दीपावली मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। जिसमें से तीन कथाएं यहाँ उल्लेखित हैं। प्रथम कथा के अनुसार जब भगवान राम , सीता और लक्ष्मण चौदह वर्ष के वनवास पूरा करने के बाद वापस आयोध्या लौटे थे। तब पूरे आयोध्यावासी इस खुशी में घी के दिये जलाये थें। जिससे पूरा आयोध्या जगमगा उठा था। तब से हिन्दू धर्म में इस त्योहार को मनाने की परंपरा रही है।

दीपावली और भगवान कृष्ण से जुड़ी पौराणिक मान्यता:

दूसरी कथा के अनुसार कृष्ण उपासकों का यह मानना है कि कार्तिक मास के अमावस्या के दिन ही श्री कृष्ण ने पापी राजा नरकासुर का वध किया था। जिससे प्रजा को अत्याचारी राजा के मर जाने से काफी खुशी हुईथी। इस खुशी में घी के दिये जलाये गए थे।

दीपावली और पांडवों से जुड़ी पौराणिक मान्यता:

तीसरी कथा महाभारत से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार पांडव ग्यारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद वापस जब हस्तिनापुर लौटे थे, तब हस्तिनापुरवासिओं ने पूरे हस्तिनापुर को दीपों की श्रृंखला से सजाया था।वह शुभ दिन कार्तिक मास के अमावस्या का दिन था।

जैन धर्म में दीपावली की पौराणिक मान्यताएं:

जैन-धर्मावलंबियों में दीपावली मनाने के पीछे अन्य कारण उत्तरदायी है। जैन-धर्मावलंबियों के अनुसार कार्तिक मास के अमावस्या के दिन ही जैन-धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। साथ ही महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य गौतम गणधर को इस दिन ही कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस खुशी में ही इस दिन को जैन-धर्म में दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

दीपावली का त्योहार कैसे मनाया जाता है?

दीपावली का त्योहार भारत देश में पूरे हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है। यूँ तो भारत देश विविधताओं से भरा हुआ देश है। जहाँ एक ओर धर्म, जाति, रहन-सहन, खान-पान की विविधता है। वहीं दूसरी ओर पर्व-त्योहारों की भी विविधता है। उन्हें मनाने के अलग अलग तरीके हैं। हर त्योहार को मनाने का अपना अलग अंदाज है। होली जहाँ रंग-बिरंगे रंगों का त्योहार है, तो वहीं दीपावली दीपों के प्रकाश का पर्व है।

दीपावली आने के कई दिन पहले से ही सबसे पहले घरों, दुकानों आदि की साफ-सफाई की जाती है। जरूरत होने पर उन्हें कलर भी किया जाता है। चूंकि दीपावली पाँच दिनों का त्योहार होता है।इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है और अंत भैया-दूज से। दीपावली की खरीदारी एक या दो दिन पहले ही कर ली जाती है। दिवाली के 1 सप्ताह पहले से ही बाजारों में चहल-पहल बनी रहती है। लोग दिवाली के लिए गणेश- लक्ष्मी की मूर्तियां, मिठाइयां, प्रसाद,फुलझड़ियां, पटाखे, गिफ्ट्स, दीप, मोमबत्ती, सजावट के अन्य सामान आदि खरीदते हैं।

दीपावली की सुबह एक बार फिर से घरों को धोया और पोछा जाता है। इस दिन के लिए घर की महिलाएं पहले से ही तरह-तरह के मिष्ठान बनाकर रख लेती हैं। आज के दिन घर, दुकानों आदि को रंग-बिरंगे मोमबत्ती और लाइटों से सजाया जाता है। सभी अपने घर के मुख्य दरवाजे पर रंगोली बनाते हैं। बच्चे घरौंदे बनाते हैं।शाम के समय शुभ मुहूर्त में गणेश- लक्ष्मी की पूजा की जाती है। उसके बाद प्रसाद का वितरण होता है।लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं। इस दिन लोग नए-नए कपड़े पहनते हैं। इसके बाद बच्चे, जवान सभी फुलझड़ियां और पटाखे छोड़ते हैं।दीपावली की शाम को पूरा आकाश, पूरी धरती जगमगा उठती है।लोग एक दूसरे को फोन पर दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं। कुल मिलाकर आज के दिन सभी बड़े प्रसन्नचित्त रहते हैं।इस तरह दिवाली का यह पर्व लोगों के जीवन में खुशियां लेकर आता है।

दीपावली के दिन लक्ष्मी जी की पूजा क्यों की जाती है?

दीपावली के दिन धन की देवी महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। इसके पीछे भी बड़ी सुंदर कहानी प्रचलित है। एक किवदंती के अनुसार इस दिन ही भगवान विष्णु बैकुंठ को वापस लौटे थे। जिससे मां लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हो गई थी। इस खुशी में उन्होंने अपने भक्तों पर काफी धन की वर्षा की थी। तब से यह परंपरा रही है कि दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है।

दूसरी कथा के अनुसार आज ही के दिन मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में स्वीकार किया था। इसलिए भी वह आज के दिन बड़ी ही उदार और प्रसन्न रहती हैं। इसलिए धन की इच्छा रखने वाले भक्त मां लक्ष्मी की श्रद्धा-पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। उनका यह विश्वास रहता है कि आज के दिन महालक्ष्मी की पूजा करने से उनकी मनोकामना जल्द ही पूरी हो सकती है।

दीपावली के दिन गणेश की पूजा क्यों की जाती है?

दीपावली के दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान गणेश की भी पूजा करने का विधान है। मां लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा करने के पीछे विद्वानों का यह तर्क है कि मां लक्ष्मी स्वभाव से चंचल होती हैं। कहा जाता है कि मां लक्ष्मी जिसके पास जाती हैं, अगर उस व्यक्ति को धन का सही सदुपयोग करने न आता हो तो बहुत जल्द ही मां लक्ष्मी उसके पास से चली जाती हैं।अतः धन का सदुपयोग कैसे करना है, इसके लिए व्यक्ति को बुद्धि और विवेक की आवश्यकता होती है।

हिंदू धर्म में बुद्धि-विवेक के देवता के रूप में भगवान गणेश की पूजा की जाती है। हिंदू-धर्म में सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान भगवान गणेश को ही माना गया है। अतः इस प्रकार मां लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश की भी पूजा की जाती है। ताकि हमारे पास वह बुद्धि और विवेक भी हो जिससे कि मां लक्ष्मी से प्राप्त धन का सदुपयोग किया जा सके।

दीपावली का महत्व:

दीपावली का भारतीय समाज में व्यापक महत्व है। भारतीय समाज में हिंदू धर्म के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण पर्व- त्योहारों में दीपावली का भी एक खास स्थान है। इसका हमारे समाज में सामाजिक, धार्मिक,आर्थिक,आध्यात्मिक पर्यावरणीय महत्व है।

दिवाली का सामाजिक महत्व:


दिवाली का सामाजिक महत्व इस रूप में दिखा देखा जा सकता है कि इस दिन की खुशी लोग अकेले-अकेले ही नहीं मनाते, बल्कि अपनी खुशियों को दूसरे लोगों में भी बांटते हैं।आज के दिन लोग अपने आसपास रहने वाले गरीबों के बीच मिठाइयां,नए- नए कपड़े,तोहफे आदि देते हैं जिससे उनकी थोड़ी-बहुत हेल्प हो सके। इस तरह दिवाली भारत में सामाजिक सौहार्द को बढ़ाता है। यह लोगों के बीच आपसी भाईचारे और समरसता के भाव का संचार करता है।

दिवाली का धार्मिक महत्व:

दिवाली का धार्मिक महत्व इस रूप में देखा जा सकता है कि यह हिंदू-धर्म में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। तथा इच्छाओं को पूरा होने की कामना की जाती है। दिवाली के दिन भक्ति का भी माहौल रहता है।इसलिए यह धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

दिवाली का आर्थिक महत्व:

दीपावली का आर्थिक दृष्टि से भी काफी महत्व है। यह दीपावली का पर्व बहुत से लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर लेकर आता है। इस दिन के लिए लोग तरह-तरह के छोटे-मोटे दुकान खोलते हैं और अच्छी कमाई करते हैं। इस तरह इस त्यौहार के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। अतः आर्थिक दृष्टि से इसका काफी महत्व है।

दिवाली का आध्यात्मिक महत्व:

दिवाली का सिर्फ सामाजिक आर्थिक और धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि आध्यात्मिक महत्व भी है। यह त्यौहार एक प्रतीक है-अंधकार पर प्रकाश के,असत्य पर सत्य के, बुराई पर अच्छाई के जीत का। यह हमें संदेश देता है कि जीवन में अमावस्या जैसी काली रात ही क्यों ना आए अगर इंसान चाहे तो दीपों की माला से अपने चारों ओर उजाला फैला सकता है।इसी भाव की ओर संकेत करते हुए हरिवंश राय बच्चन ने लिखा है कि

“है अंधेरी रात पर ,
दीवा जलाना कब मना है।”

अर्थात दिवाली हमें निराशा में भी आशा की किरण जलाये रखने की सीख देता है।

दिवाली का पर्यावरणीय महत्व:

दिवाली का पर्यावरण की दृष्टि से भी काफी महत्व है। हिंदू धर्म में कुछ ऐसे पर्व हैं, जिसमें साफ-सफाई का बड़ा ही ख्याल रखा जाता है। उसमें से एक यह दिवाली भी है। इस पर्व के आने से कई सप्ताह पहले से ही लोग अपने घरों,दुकानों और आसपास की सफाई करते हैं । जिससे कई तरह के हानिकारक जीवाणु, कीटाणु, मच्छर आदि का भी सफाया हो जाता है। इससे कई तरह की बीमारियों का खतरा टल जाता है।

यह त्यौहार यह भी संदेश देता है कि हमें सिर्फ अपने आसपास को ही साफ नहीं रखना चाहिए बल्कि, अपनी आत्मा को भी शुद्ध और पवित्र बनाए रखना चाहिए। मन की सफाई भी होनी चाहिए। तभी इस त्यौहार की सार्थकता सिद्ध होगी।

दीपावली और प्रदूषण:

दीपावली का त्यौहार जहां एक तरफ साफ-सफाई के लिए प्रेरित करता है वही दूसरी तरफ दिवाली की शाम को छोड़े जाने वाले पटाखों से पूरा वातावरण प्रदूषित हो उठता है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या दिवाली से कई दिन पहले से साफ-सफाई सिर्फ इसलिए की जाती है कि शाम को भरपूर प्रदूषण फैलाया जाय? ऐसे में उस सफाई के लिए की गई मेहनत का कोई औचित्य नहीं ठहरता।

यूं तो पृथ्वी पर कई वजहों से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है परंतु दिवाली की शाम को पूरे देश में जब एक साथ पटाखे छोड़े जाते हैं तो इससे प्रदूषण काफी बढ़ जाता है।इसका साक्षात प्रमाण हमें दिल्ली जैसे महानगरों में देखने को मिल सकता है।जहां दिवाली की सुबह का नजारा काफी चिंतित करने वाला होता है। चारों तरफ प्रदूषण के धुंध छाए रहते हैं। आँखों में जलन और साँस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं सब महसूस करते हैं। यह 2 दिनों तक वैसे ही बना रहता है। इसलिए दिवाली का यह पक्ष अगर देखा जाए तो यह एक चिंता का विषय है।

क्या दिवाली के पटाखे पर बैन लगाना चाहिए?

दिवाली पर अत्यधिक पटाखे जलाने से पर्यावरण में प्रदूषण स्तर काफी बढ़ जाता है। इस प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रति वर्ष भारत सरकार की तरफ से आदेश भी प्रेषित किए जाते हैं। साथ ही लोगों से यह अनुरोध किया जाता है कि वे पर्यावरण को ध्यान में रखकर ऐसे पटाखे ना छोड़े जिससे पोलूशन का खतरा ज्यादा होता है। कई जगह सरकार सख्त कदम उठाते हुए बाजारों में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा देती है। यह एक सराहनीय कदम माना जा सकता है।

हिंदू धर्म को मानने वाले कई लोग इसे अपनी धार्मिक भावना में हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। और इस आदेश का उल्लंघन भी करते हैं। क्योंकि, वे इस बात को सिर्फ धर्म की दृष्टि से देखते हैं। अगर वे पर्यावरण की दृष्टि से देखें और संपूर्ण मानवता की दृष्टि से देखें तो वे निश्चय ही दीपावली के दिन पटाखे नहीं छोड़ने का सही निर्णय ले पायेंगे।

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