पैरालंपिक: खेलों की अनोखी दुनिया | Paralympic Games

पैरालंपिक खेल खेलों की अनोखी दुनिया है। अनोखी इस मायने में क्योंकि यह ऐसे लोगों का खेल है जिनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता को देख कर हम उन्हें निरीह और किसी कार्य के लिए विशेषकर खेल की दुनिया के लिए अयोग्य मानने लगते हैं। लेकिन यह दिव्यांग ही पैरालंपिक की दुनिया में समाज द्वारा निर्मित वैचारिक सीमा का अतिक्रमण कर सबको अचंभित कर देते हैं और इस प्रकार “अभाव में भी संभावना” के विश्वास को और दृढ़ कर देते हैं।

पैरालंपिक क्या है ?

पैरालंपिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली खेल प्रतियोगिता है जिसमें शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति एक खिलाड़ी के रूप में भाग लेते हैं। यह ओलंपिक स्तर का ही बहु-खेल प्रतियोगिता है।

पैरालंपिक खेल की शुरुआत:

पैरालंपिक खेलों के आगमन से पहले भी शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए खेलों का आयोजन किया जाता था। ऐसा आयोजन करने वाले प्रथम एथलीट जर्मन अमेरिकी जिम्नास्ट जॉर्ज आइज़र थे जिनका एक पैर कृत्रिम था।

विकलांग एथलीटों के लिए पहला संगठित कार्यक्रम लंदन में 1948 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के उद्घाटन के दिन हुआ जो ओलंपिक खेलों के साथ मेल खाता था। पैरालंपिक खेलों का मौजूदा ग्लैमर द्वितीय विश्व युद्ध के घायल सैनिकों को फिर से मुख्यधारा में लाने के मकसद से हुई इसकी शुरुआत में है। स्पाइनल इंजुरी के शिकार सैनिकों को ठीक करने के लिए खास तौर से इसे शुरू किया गया था।

साल 1948 में द्वितीय विश्व युद्ध में घायल हुए सैनिकों की स्पाइनल इंजुरी को ठीक करने के लिए स्टॉक मानडेविल अस्पताल में काम कर रहे न्यूरोलॉजिस्ट सर गुडविन गुट्टमान ने इस रिहेबिलेशन कार्यक्रम के लिए स्पोर्ट्स को चुना था। इन खेलों को तब अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर गेम्स का नाम दिया गया था।

साल 1948 में लंदन में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ और इसी के साथ ही डॉक्टर गुट्टमान ने दूसरे अस्पताल के मरीजों के साथ एक स्पोर्ट्स कंपटीशन की भी शुरुआत की जिसे काफी पसंद किया गया। फिर देखते ही देखते डॉक्टर गुट्टमान के इस अनोखे तरीके को ब्रिटेन के कई स्पाइनल इंजरी यूनिट्स ने अपनाया और एक दशक तक स्पाइनल इंजरी को ठीक करने के लिए यह रिहेबिलेशन प्रोग्राम चलता रहा।

1952 में फिर इसका आयोजन किया गया। इस बार ब्रिटिश सैनिकों के साथ ही डच सैनिकों ने भी हिस्सा लिया। इस तरह इसने पैरालंपिक खेल के लिए एक मैदान तैयार किया।

पैरालंपिक खेल: नाम एवं प्रतीक

सर्वप्रथम 1988 में ग्रीष्मकालीन खेलों के आयोजन में पैरालंपिक खेल अधिकारिक रूप से प्रयोग में आया। “स्पिरिट इन मोशन” पैरालंपिक खेल का आदर्श वाक्य है। पैरालंपिक के प्रतीक में 3 रंग होते हैं:- लाल,नीला और हरा जो राष्ट्रों के ध्वज में सबसे व्यापक रूप में प्रयोग किए गए हैं। प्रत्येक रंग एगीटो के आकार में होते हैं।

पैरालंपिक खेल का उद्देश्य:

पैरालंपिक खेल का मुख्य उद्देश्य पैरालम्पियन में प्रतिस्पर्धा की भावना का निर्माण करना है। इसके साथ ही अक्षम व्यक्तियों को खेलों के क्षेत्र में उत्कृष्ट स्थान हासिल करने के लिए प्रेरित और उत्साहित करना इसके मुख्य उद्देश्य में शामिल है। पैरालंपिक खेलों का उद्देश्य शारीरिक रूप से चुनौती झेल रहे व्यक्तियों को भी खेलों में समान अवसर उपलब्ध करा कर उनको समानता का बोध कराना और उनके अंदर स्थित असीमित प्रतिभा का विकास करना है।

पैरालंपिक खेल का प्रतिभा खोजने एवं क्षमता निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। पैरालंपिक खेलों को शारीरिक और मानसिक रूप से असमर्थ व्यक्तियों में स्थित प्रतिभाओं को निखारने तथा इच्छुक अक्षम व्यक्तियों में क्षमता निर्माण के रूप में देखा जाता है। साथ ही साथ पैरालंपिक खेलों के आयोजन से सामान्य और असामान्य व्यक्तियों के मध्य असमानता, असहजता आदि के बोध को कम करने में सहायता मिली है।

अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (आईपीसी):

1)अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (आईपीसी):- अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति ओलंपिक समिति के समान एक वैश्विक स्तरीय निकाय है। इसमें 176 राष्ट्रीय पैरालंपिक समितियां (एनपीसी)और 4 विकलांगता विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय खेल संघ शामिल है। आईपीसी का मुख्यालय बॉन (जर्मनी) में है। आईपीसी ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन पैरालंपिक खेलों के आयोजन के लिए जिम्मेदार है। यह नौ खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ के रूप में भी कार्य करता है।

आईपीसी और आईओसी के बीच अन्तर्सम्बन्ध:

आईपीसी का आईओसी (इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी )के साथ सहयोगात्मक संबंध है। आईपीसी के प्रतिनिधि में आईओसी के सदस्य भी शामिल रहते हैं। आइओसी विभिन्न समितियों एवं आयोगों में भाग लेते हैं। करीबी कामकाजी संबंधों के बावजूद अलग-अलग खेलों के साथ दो शासी निकाय अलग-अलग रहते हैं।

आरंभ में पैरालंपिक खेलों को प्रतिभागियों की उपलब्धियों पर जोर देने के लिए डिजाइन किया गया था ना कि विकलांगता पर। हाल के खेलों में इस बात पर जोर दिया गया है कि खेल क्षमता के बारे में है ना कि विकलांगता के बारे में।

अनुदान एवं मीडिया कवरेज:

पैरालंपिक खेलों का आयोजन प्रमुख प्रायोजकों के योगदान एवं समर्थन से किया जाता है तथा इसमें प्रायोजक राष्ट्र का विशिष्ट योगदान होता है।

1984 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के बाद ओलंपिक खेलों ने वैश्विक मीडिया कवरेज में जबरदस्त वृद्धि हासिल की है। सर्वप्रथम 1976 में खेलों का प्रसारण टेलीविजन पर प्रारंभ हुआ था लेकिन यह विशिष्ट रूप से यूरोप तक ही सीमित था। फिलहाल के आयोजन में टेलीविजन के साथ-साथ मोबाइल एप्लीकेशन द्वारा खेलों का प्रसारण प्रारंभ हो गया है जिससे इसकी पहुंच आम लोगों तक बड़ी आसानी से हो गई है। इससे इसकी लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है।

पैरालंपिक के खेल प्रकार:

पैरालंपिक खेल में अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति द्वारा 9 प्रकार के खेलों का आयोजन किया जाता है। जिनके नाम निम्न प्रकार हैं:

  • पैरालंपिक एथलेटिक्स
  • पैरालंपिक तैराकी
  • पैरालंपिक शूटिंग
  • पैरालंपिक पावरलिफ्टिंग
  • पैरा स्पाइनस्कीइंग
  • पैरालंपिक बायलोन
  • पैरालंपिक क्रॉस कंट्री स्कीइंग
  • आइस स्लेज हॉकी
  • व्हीलचेयर ट्रांसस्पोर्ट्

पैरालंपिक खेल और विकलांगता श्रेणियां:

पैरालंपिक खेल में तीन प्रकार के विकलांगता से ग्रसित व्यक्तियों को एक खिलाड़ी के तौर पर प्रवेश मिलता है।

  • शारीरिक दुर्बलता
  • दृश्य हानि
  • बौद्धिक विकलांगता

शारीरिक दुर्बलता के अंतर्गत भी कई तरह की अक्षमता को शामिल किया गया है।

  • बिगड़ी हुई मांसपेशी शक्ति
  • गति की निष्क्रिय सीमा
  • अंग की कमी
  • पैर की लंबाई में अंतर
  • छोटा कद
  • हाइपोटोनिया
  • एथेटोसिस

पैरालंपिक खेल और भारत:

पैरालंपिक खेल के शुरू होने के 20 वर्ष बाद भारत इस खेल प्रतियोगिता में भाग लिया। सन 1968 में इजराइल के तेल अवीव में आयोजित पैरालंपिक खेल में भारत पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज की। इस खेल में भारतीय प्रतिनिधिमंडल में 10 एथलीटों को भेजा गया। जिनमें 8 पुरुष और 2 महिलाएं शामिल थी।हालांकि भारत इस आयोजन से खाली हाथ लौटा लेकिन बड़े मंच पर प्रदर्शन करना भारत के पैरा एथलीट के लिए यह पहला अनुभव था।

उसके 4 साल बाद यानी 1972 में जर्मनी के हिट अलवर गेम्स में भारत ने पैरालंपिक खेल में अपना पहला पदक जीता। मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में स्वर्ण पदक हासिल करते हुए 33.331 सेकंड का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। इस खेल आयोजन में भाग लेने वाले 42 देशों की तालिका में भारत 1 पदक के साथ 24वें स्थान पर रहा।

टोक्यो पैरालंपिक 2020

टोक्यो पैरालंपिक 2020 का आयोजन 24 अगस्त से 5 सितंबर तक किया जा रहा है। इस खेल में भारत की ओर से नौ अलग-अलग स्पोर्ट्स इवेंट्स में 54 पैरा एथलीट हिस्सा लेंगे। पैरालंपिक खेलों में अब तक का भारत का सबसे बड़ा दल टोक्यो पैरालंपिक 2020 में हिस्सा लिया है।

टोक्यो में भारत पहले से ही तीरंदाजी, एथलेटिक्स और निशानेबाजी की 14 स्पर्धाओं में 20 स्थानों पर अपनी जगह पक्की कर रखी है। विशेष रूप से हरविंदर सिंह और विवेक चिकारा पैरालंपिक गेम्स के लिए क्वालीफाई करने वाले देश के पहले पुरुष तीरंदाज बने।

2016 में स्वर्ण विजेता मरियप्पन थंगावेलु भी टोक्यो के लिए नेतृत्व करने वाले दल का हिस्सा हैं। इस खेल में भाग लेने वाले सभी भारतीय एथलीटों से भारत को काफी उम्मीदें हैं। ये एथलीट उम्मीदों पर खरे उतरते नजर भी आ रहे हैं।

भविना पटेल टेबल टेनिस प्रतिस्पर्धा में भारत की ओर से इतिहास में पहली बार फाइनल खेल कर सिल्वर मेडल प्राप्त किया है।

खेल से जुड़े भारतीय एथलीटों से भारत को उतनी ही उम्मीदें हैं जितनी कि ओलंपिक एथलीटों से थी। टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारतीय एथलीटों के शानदार प्रदर्शन ने भारत वासियों को गौरव का क्षण दिया। यही उम्मीद टोक्यो पैरालंपिक एथलीटों से भी की जा रही है।

हालांकि टोक्यो ओलंपिक 2021 के प्रति लोगों का रुझान जितना ज्यादा था उसकी तुलना में टोक्यो पैरालंपिक 2020 के प्रति कम देखा जा रहा है। इसकी वजह अगर जानने की कोशिश की जाए तो एक सबसे प्रमुख कारण यह दिखता है कि ओलंपिक और पैरालंपिक खेल आयोजन के समय विश्व की राजनीतिक परिस्थितियों में अंतर।

अभी हाल में ही में अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। ।यही कारण है कि टीवी, इंटरनेट, मीडिया आदि इस घटना को ज्यादा कवर कर रहे हैं और टोक्यो पैरालंपिक 2020 को कवरेज कम मिल पा रहा है। अगर यह घटना न हुई होती तो इसकी पूरी संभावना होती किओलंपिक के जैसे ही पैरालंपिक खेल को भी लोगों का अटेन्शन और प्यार मिलता।

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